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ए ज़िंदगी

ए ज़िंदगी तु चाहता क्या है? ख़ुशीयो से तुझे परेशानी क्यु है? रास्ते तेरे दुख मे भीगे क्यु है? ए ज़िंदगी तु चाहता क्या है? मौत से गहरी दोस्ती क्यु है? खुद से नफ़रत इतनी क्यु है? हर घडी इंतिज़ार आख़िर है किसका ? झूटी उम्मीदकी दिप जलाए बैठा क्यु है? ए ज़िंदगी तु चाहता क्या है? कौन है वो जो तुझको चाहे कौन है वो जो तुझको सँवारे क्यु ख़ुदसे परेशाँ क्यु ख़ुदसे हैराँ ख़ुदमे क्या कमी, जो तु दुसरेमे ढूंढता है ए जिन्दगी तु चाहता क्या है? अपने आपको सँवारनेमे दिक्कत क्या है? अपने आपको प्रेम करने मे हर्ज क्या है? ख़ुदसे भी तो नाता जोड़ो ख़ुदको भी तो मौका दो के तभी देख पावोगे, के जीवन आख़िर है क्या  तब कहिँ तुम्हे मालूम पडेगा की जिन्दगी चहती तो कुछ और थि पर तुम अपने अलग अंदाज़से जिना सिख गए ||

हर राह, हर मन्जील

हर राह मुझे आपकी तरफ़ हि क्यु ले जा रही है हर मन्जील मुझे आपसे हि जुडी क्यु नजर आती है || हर घडी फ़िक्र ये मुझेको सताती है मोहब्बत हे या जिन्सी ख़्वाहिश, ये ख़्याल मुझ्को परेशान कर देती है || याद करता हूँ आपका चेहरा जब  तो सारे मंफ़ी सोच ओझाल हो जाते है || तब दुर कही एक नाई दुनियाँका आग़ाज़ होने लगता है बुलावा वहासे सुनाइ, चिड़ियोंकी आवाज़मे गूँजती है || कल का पता नही, मुझे तो आपके साथ आज मे जीना है रस्म-ओ-रिवाजसे  बेपरवाह,  बस अब आपकी आग़ोश मे डूब जाना है || बस अब आपकी आग़ोश मे डूब जाना है ||

तक्लिफे

तक्लिफोकी नदियोमे गोते लगना सिख लिया आपकी हर नामंजुरीको गले लगना सिख लिया | जिन्दगीका दस्तूर येही, आखिर दु:ख तो होना हि है  दो मिठे पल मिलनके बाद,आखिर जुदा तो होना हि है ||

आपकी नफरत

बिना इजाजत अगर आपके प्यारमे डूब जानेकि हिम्मत है  तो चलो आज आपकी नफरत कि भी आज़माइश कर लेते है | कम-से-कम इसी बहाने हमारे दिल को ये तसल्ली तो होगी कि आप हमे अभि भी अपने यादोंमे बसाए रख्ते है | |

तुम अकेले हो

तुम अकेले हो जिन्दगीकि मुख़्तलिफ़ोसे गुजरते रेहते हो | सबके साथ झुठे सबके वादे रुखे || बस  अपने आपसे झुठे वादे ना करना अपने आपको किसिके हावाले ना छोड्ना ||| जब तन्हाइयोमे सुकून मिल्ने लगे समझलेना खुदसे रू-ब-रू होने लागे |||| तब एहसासोकि दरवाज़ेमे दस्ताक देते हुवे मोक्ष्यकि मधुशाला तुम्हारे इन्तजार मे होंगे |||||

जिस रास्तेमे

जिस रास्तेमे उनका आना-जाना था उसी रास्तेमे मेरा घरका ठिकाना था खिड्की मे बैठे जब मे उनकी राह तकता था तब अपनी झुकी नजरसे उनका मुझे देखना हाल-ए-दिल बयान करदेता था |  यु हि इन्तजार मे मौसम कि घडिया घुमा करते थे देर-सवेर उन्हीकी निगाहोमे डूब जानेके लिए ये दिल हजारो ख़्वाब बुना करते थे  के एक-ना-एक दिन उनका प्यार बाहार बनके आए तो दुनिया किसी जननत जैसी नजर आए | | हवाओने एसा रुख मोडा उनकि पायलकि छन्कारने इस रास्तेसे रिश्ता तोडा हम फिर भी उन्हीकि इन्तजारमे बेचैनिया बढाते गए उनकी निगाहोकि बस एक झलककि ख़्वाहिश करते रेह गए दिलमे दबाए हुवे वो हमारा प्यार अपने लावोपे ला ना सकी प्यार होते हुवे भी इजहार कर ना सकी उनका आना नामुम्किन सा लग्ने लगा था हम फिर भी उमर भर उनहिकी राह तकते रह गए  हम फिर भी उमर भर उनहिकी राह तकते रह गए | | |

All this for a Bookmark!

 All this for a Bookmark!      By the end of this story it will be hard for you to believe everything, and I mean every fu*king everything that happened or will happen in this story is just for a bookmark. I hope you are intelligent enough to understand that the ‘bookmark’ here is just a metaphor. Eventually a man or a woman, my early apologies to feminists, will go to lengths, I mean it’s like they say until death takes us apart, yes they will go there just to claim what he/him or she/her has created or even been part of the creation. This term ‘creation’ in 21 st century is not merely originating by the way, it’s not about being authentic anymore rather it’s all about stealing. As they say good artist copy, great artist steal. Yes, this line is about to bring a whole lot of hell fire in the central department of psychology. And even the head of department, the teacher and more or less everyone is caught in this mess, well why shouldn’t they? After all the depart...